Wednesday, November 21, 2012

Vrindavan Shrimad Bhagwat Katha By Thakurji Part 06 of 14

Shrimad Bhagwat Katha in Mathura By Shri Thakurji Part 1 of 9

Ramesh Bhai Oza Bhagwat Katha Part-15 Trambakeswar(Kumbh 2003)

My Movie (102)Sri Vasudevanand Sarasvati(Tembe)Swami Charitra sar Vol1

My Movie (101)Sri Vasudevanand Sarasvati (Tembe) Swami charitra sar vol1

My Movie (100)Sri Vasudevanand Sarasvati (Tembe) Swami charitra sar Vol2

My Movie (99)Sri Vasudevanand Sarasvati (tembe) Swami charitra sar vol.3

My Movie (98)P.P.Vasudevanand (Tembe)SwamiVol 4

My Movie (98)P.P.Vasudevanand (Tembe)Swami

Tuesday, November 13, 2012

Mahalakshmi stotram

My Movie (56)End of Yadukul

My Movie (55)Importance of Company of saints

My Movie (54)God Bramha requests Srikrishna to return

My Movie (53)Devarshi Narada'sAdvice to Vasudev

My Movie (52)The Yadukul gets curse from Saints

My Movie Arjuna's wedding with Subhadra

My Movie (50)Sudama visits Srikrishna

My Movie (49)Killing of Dantavkra and Vidurath

My Movie (48)Bheema kills king Jarasangh

My Movie Wedding of Kumar Samb

My Movie (46)Wedding of Usha and Aniruddha

My Movie (45)Srikrishna's weddings with other princes

Monday, November 12, 2012

My Movie (44)BIRTH OF pradyumna

My Movie (43)Srikrishna's marriage with Rukmini

My Movie (42)War with king Jarasangh

My Movie Uddhava visits Gopis in Vrajbhumi

My Movie (40)Akrura arrives in Vraja village.

My Movie (39Gopi's yugalgeet

My Movie (37) yugal geet

My Movie (34)Srikrushna holds Govardhan on small finger

My Movie (33)Venugeet

My Movie (31)Kaliya Mardan

Saturday, November 10, 2012

My Movie (24)Sreeram Geeta

My Movie (23)huCoronation of Sriramchandraprab

My Movie (22)Ravana meets demon Kalanemi

My Movie (21)Demon Shuk advses to Ravanaa

My Movie (20)Vbhishana joins Sriram

My Movie (19Hanuman's Advice to Ravana)

My Movie (18)Sriram's advice to Lakshamana

My Movie (17)Advice given to King Vali's Wife

My Movie (16)Sriram kills demon Kabandh

My Movie (15)Sriram visits Shabari's Ashram

My Movie (14)Srirama's stay at Panchvati

Thursday, November 8, 2012

Adhyatma Ramayan


                             

                                         ||  श्रीगुरोभ्यानमः ||                    
               प्रत्येक गुरुवारी म्हणावयाची भजने.

   गुरुर्ब्रम्हा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरा | गुरुर्साक्षात परब्रम्ह तस्मै श्री गुरुवेनमह: ||

   ब्रम्हानंदम परमसुखदम केवलं ज्ञानमूर्तिम | व्दंदातितं गगन सदृशं तत्व मत्सादी लक्षम ||     

  एकं नित्यं विमल वचनं सर्वाधी साक्षी भूतम | भावातीतं त्रिगुण रहितं सद्गुरुं तन्मामी ||

(१)                                                               

ओमकार प्रधान रूप गणेशाचे | हे तिन्ही देवांचे जन्म स्थान ||ध्रुवपद||

‘अ’ कार तो ब्रम्ह ‘उ’ कार तो विष्णू | ‘म’ कार महेश जाणियेला||

ऐसे तिन्ही लोक जेथुनी उत्पन्न | तो हा गजानन मायबाप ||

तुका म्हणे ऐसी वेदवाणी | पहावी पुराणी व्यासांचीया ||

                                    श्रीदत्तात्रेय प्रार्थना स्त्रोत्र 

 श्रीपाद श्रीवल्लभ त्वं सदैव | श्रीदत्तास्मान्पाही देवाधिदेव | भावग्राहयम क्लेश हारीन्सू किर्ते |                         घोरात्कष्टां दुद्धरास्मान्नमस्ते  || ध्रु || त्वं नो माता त्वं पिताधोपिस्तवं | त्राता योगक्षेम कृत्सद्गुरुत्वम् |

त्वं सर्वस्वम नो प्रभो विश्वमुरते | घोरात्कष्टां दुद्धरास्मान्नमस्ते  ||२|| पापं व्याधीमाधींची दैन्यं | भितीं क्लेश्म त्वं हराशुत्वदन्यम |  त्रातारम नो विक्ष इशास्त जुर्ते | घोरात्कष्टां दुद्धारास्मान्न्मस्ते ||३|| नान्यास्त्राता नापी दाता न भर्ता | तत्वो देवत्वं शरण्यो $ कहर्ता |कुर्वात्रेयानु ग्रहमपूर्ण राते | घोरात्कष्टां धुद्धरास्मांन्नमस्ते ||४|| धर्में प्रीतीम संन्मतिं देवभक्तिं चाखीलानंद मूर्ते | घोरात्कष्टां धुद्धरास्मान्नमस्ते ||५|| श्लोक पंचकमे तधो लोकमंगल वर्धनम| प्रपठे न्नियतो भक्त्यास श्रीदत्तो प्रीयोभवेत ||६||

                           ||  इति श्री दत्तात्रेया स्तोत्रम ||

                                    ||  पंचपदी  ||

उद्धरी गुरुराया, अनसूया- तनया दत्तात्रेया ||धृवपद || जो अनसूयेच्या भावाला भुलूनिया सुत झाला | दत्तात्रेया अशा नामाला मिरवी वंद्य सुराला | तो तू मुनिवर्या, निजपाया  स्मरता वारीसी माया ||१|| जो माहुरपुरी शयन करी, संह्याद्रीचे शिखरी | निवासे, गंगेचे स्नान करी | भिक्षा कोल्हापुरी | स्मरता दर्शन दे | वारी भया तो तू आगमेया ||२|| तो तू वांझेसी सुत देसी, सौभाग्या वाढविसी | मरता प्रेतासी जीवविसी सव्दर दाणा देसी | यास्तव वासुदेव तव पाया, परी त्या तरी सदया ||३|| उद्धरी गुरुराया | अनसूया तनया दत्तात्रेया ||धृवपद||

                             दत्ता मजला प्रसन्न होसी.

दत्ता मजला प्रसन्न होसी जरी तू वर देसी | तरी आनन मागे तुझसी निर्धारूनि मानसी ||धृवपद||                                   स स्मरण तुझे मज नित्य असावे | भावे तव तव गुण गावे.| अनासाक्तीने मी वागावे | ऐसे मन वळवावे ||१||         सर्व इंद्रिये आणि मन हे तुझे हाती आहे | यास्तव आता तू लवलाहे स्वपदी मन रमवावे ||२||विवेक आणि सत्संगती हे नेत्रव्दय बा आहे | वासुदेव निर्मळ देहे जेणे त्वपदी राहे. ||३|| दत्ता मजला प्रसन्न होसी ---

                                 करुणा त्रिपदी

शांत हो श्रीगुरुदत्ता मन चित्ता शमवी आता.| तू केवळ माता जनिता सर्वथा तू हितकर्ता | तू आप्त स्वजन भ्राता | सर्वथा तूची त्राता | भय कर्ता तू भयहर्ता | दंड धरिता तू परी पाता | तुजवाचून न दुजी वार्ता | तू आता आश्रय दत्ता |१|| धृवपद|| अपराधास्तव तू गुरुनाथा जरी दंडा धरिसी यतार्था | तरी आम्ही गाउनी गाथा तव चरणी नमवू माथा | तू तथापि दंडीसी देवा कोणाचा मग करू धावा?| सोडविता दुसरा तेंव्हा कोण दत्ता आंहा त्राता ||२|| धृ ||तू नातासा होवुनी कोपी दंडीताही आम्ही पापी | पुनरूपी पुनरुपीही चुकता तथापि आम्हावरी नाच संतापी | गच्छत: स्सखलन्ननं कोपी असे मानुनी नच हो कोपी | निजकृपा लेशा ओपी | आम्हावरी तू भगवंता. ||३ || तव पदरी असता त्राता आडमार्गी पाउल पडीता सांभाळूनी मार्गावारीता आणिता न दुजा त्राता | निज बिरुदा आणुनी चित्ता | तू पतित पावन दत्ता | वळे आता आम्हावरीता करुणाघन तू गुरुनाथा || ४|| सहकुटुंब सहपरिवार दास आम्ही हे घरदार| तवपदी अर्पू असार संसार रहित हा भार | परी हारीसी करुणा  सिन्धो| तू  दिनानाथ सुबंधो आम्हा अधालेश न बाधो वासुदेव प्रार्थित दत्ता  ||५||

                                   श्रीगुरु दत्ता -----

श्रीगुरु दत्ता जय भगवंता,ते मन निष्ठुर न करी आता ||धृवपद|| चोरे व्दिजासी मारिता मन जे कळवळले ते कळवळो आता ||२|| पोटशुलाने व्दिज तडफडता कळवळले ते कळवळो आता.||३|| व्दिज सुत मरता वळले ते मन होकी उदासीन न वळेची आता ||४|| सतीपती मरता काकुळती येता वळले ते मन न वळे आता.||५|| श्रीगुरु दत्ता त्यजी निष्ठुरता कोमल चित्ता वळवी आता.||६||

                                  जय करुणाघन –

जय करुणाघन निजजन जीवन अनसूया नंदन पाही जनार्दन ||धृवपद|| निज अपराधे उपराठी दृष्टी होवून पोटी भयधरू पावन||१|| तू करुणाकर कधी आम्हावर रुससी न किंकर वरदा कृपाघन.||२|| वारी अपराध तू मायबाप तव मनी कोप लेश न वामन.||३|| बालका अपराधा गणे जरी माता तरी कोण त्राता देईल जीवन ||४|| प्रार्थी वासुदेव पदी ठेवी भाव पदी देवो ठाव देव अत्री नंदन ||५||

                                                    

                                  सांगावे कवण्या ठाया जावे

सांगावे कवण्या ठाया जावे, कवणाते स्मरावे, कैसे काय करावे, कवण्या परी मी राहावे,|कवण येउनी कुरुंदवाडी स्वामी ते मिळवावे.|याहारी जेवावे, व्यवहारी बोलावे संसारी घालुनी अंगिकारी प्रती पाळिसी जो निर्धारी केला जो निज निश्चय स्वामी कोठे तो अवधारी | या राणी माझी करुणा वाणी, काया कष्टी प्राणी, ऐकून घेशील कानी | देशील सौख्य निदानी | संकटी येउनी मूर्च्छित असता पाजिल कवण पाणी | त्यावेळा सत्पुरुषांचा मेळापाहतसे निज डोळां, लाविसी भस्म कपाळा, सांडी भय तू बाळा | श्रीपाद श्रीवल्लभ म्हणती अभय तुज गोपाळा||

                                तीन शिरे सहा हात ...

 तीन शिरे सहा हात | तया माझा दंडवत | काखे झोळी पुढे श्वान | नित्य जानव्हीचे स्नान |माथा शोभे जटाभार |अंगी विभूती सुंदर | शंख चक्र गदा हाती | पायी खडावा गर्जती | तुका म्हणे दिगंबर | तया माझा नमस्कार || धृ ||

                                   श्रीगुरु पादुकाष्टक

ज्या संगतीनेच विराग झाला | मनोदारीचा जडभास गेला | साक्षात परमात्मा मज भेटविला | विसरू कसा मी सद्गुरू पादुकेला.||१|| सद्योग पंथे घरी आणियेले | अन्गेच माते परब्रम्ह केले | प्रचंड तो बोध रवी उदेला | विसरू कसा मी सदगुरु पादुकेला ||२|| चराचरी व्यापकता जयाची | अखंड भेटी मजला त्याची | परमपदी संगम पूर्ण झाला | विसरू कसा मी सदगुरु पादुकेला ||३||  जो सर्वदा गुप्त जनात वागे | प्रपन्न भक्ता निजबोध सांगे | सदभक्ती भावा करीता भुकेला | विसरू कसा मी सदगुरु पादुकेला ||४|| अनंत माझे अपराध कोटी | नाणी मनी घालुनी सर्व पोटी | प्रबोध  करीता श्रम फार झाला | विसरू कसा  मी सदगुरु पादुकेला ||५|| कांही मला सेवनहीन न झाले | तथापि तेणे मज उद्धरिले | आता तरी अर्पीन प्राण त्याला | विसरू कसा मी सदगुरु पादुकेला ||६|| माझा अहंभाव वसे शरीरी | तथापि तो सदगुरु अंगीकारी | नाही मनी अल्प विकार ज्याला | विसरू कसा मी सदगुरु पादुकेला,||७|| आता कसा हा उपकार फेडू | हा देह ओवाळूनी दूर सोडू | म्या एक भावे प्रणिपात केला | विसरू कसा मी सदगुरु पादुकेला ||८|| जया वानिता वानिता वेदवाणी | म्हणे नेती नेती तिला जे दुरोनी | नव्हे अंत ना पार ज्याच्या रुपाला | विसरू कसा मी सदगुरु पादुकेला ||९|| जो साधूच्या अंकित जीव झाला | त्याचा भार असे निरांजनाला | नारायणाचा भ्रम दूर केला | विसरू कसा मी सदगुरु पादुकेला ||१०||

                                       || शरणागती ||               

 दत्तात्रेया तव शरणं | दत्तनाथा तव शरणं | त्रिगुणात्मका त्रिगुणातीता त्रिभुवन पालक तव शरणं ||१|| शाश्वत मूर्ते तव शरणं श्यामसुंदरा तव शरणं | शेषा भरणा शेष भूषणा शेषसायी गुरु तव शरणं ||२|| षड्भूज मूर्ते तव शरणं | षडभुज यतिवर तव शरणं | दंड कमंडलू गदा पद्म, शंख, चक्रधर तव शरणं ||३|| करूणा निधे तव शरणं | करुणा सागर तव शरणं | श्रीपाद श्रीवल्लभ गुरुवर नरसिंह सरस्वती तव शरणं ||४|| श्रीगुरुनाथा तव शरणं | सदगुरु नाथा तव शरणं | कृष्णा संगम तरुवर वासी भक्त वत्सला तव शरणं ||५|| कृपामुर्ते तव शरणं | कृपा सागरा तव शरणं कृपा कटाक्षा कृपावलोकन कृपानिधे प्रभू तव शरणं ||६|| कालांतका तव शरणं | कालनाशका तव शरणं | पूर्णानंदा पूर्ण पुरेषा पुराण पुरूषां तव शरणं ||७|| जगदीशा तव शरणं | जगन्नाथा तव शरणं | जगत्पालका जगदाधीशा, जगद्धोधारा तव शरणं ||८|| अखीलांतका तव शरणं | अखीलेश्वर्या तव शरणं | भक्तप्रिया वज्रपंजरा प्रसन्न वक्रा तव शरणं ||९|| दिगंबरा तव शरणं | दीनदयाघन तव शरणं | दिनानाथा दीनदयाळा दीनोद्धारा तव शरणं ||१०|| तापोमुर्ते तव शरणं | तेजोराशी तव शरणं | ब्रह्मानंदा ब्रम्हसनातन ब्रम्हमोहना तव शरणं ||११|| विश्वात्मका तव शरणं | विश्वरक्षका तव शरणं | विश्वंभरा विश्वजीवना विश्वपरात्पर तव शरणं ||१२|| विघ्नांतका तव शरणं | विघ्ननाशका तव शरणं | प्रणवातीता प्रेमवर्धना प्रकाशमूर्ते तव शरणं ||१३|| निजानंदा तव शरणं | निजपद दायका तव शरणं | नित्य निरंजन निराकारा तव शरणं ||१४|| चीधघन मूर्ते तव शरणं | चीदाकारा तव शरणं | चिदात्म रुपा चीदानंदा  चीत्सुक कंदा तव शरणं ||१५|| अनादी मूर्ते तव शरणं | अखीलावतारा  तव शरणं | अनंत कोटी ब्रम्हांड नायका अघटीत घटना तव शरणं ||१६|| भक्तोद्धारा तव शरणं | भक्त रक्षका तव शरणं | भक्तानुग्रह गुरुभक्त प्रिया, पतीतोद्धारा तव शरणं ||१७||

 

                                || प्रदक्षिणा ||

धन्य, धन्य हो प्रदक्षिणा सदगुरु रायाची | झाली त्वरा सुरवरा विमान उतरायाची ||धृ || पदोपदी अपार झाल्या पुण्याच्या राशी | सर्वही तीर्थे घडली आम्हा आदी करुनी काशी ||१|| मृदंग टाळ ढोल भक्त भावार्थे गाती | नाम संकीर्तने ब्रम्हानंदे नाचती ||२|| कोटी ब्रम्हहत्या हरिती करीता दंडवत | लोटांगण घालिता मोक्ष लोळे पायात ||३|| गुरुभजनाचा महिमा न काले आगमा-निगमासी | अनुभविते जाणीते ते गुरुपदीचे अभिलाषी ||४|| प्रदक्षिणा करुनी देह भावे वाहिला | श्रीरंगात्मक विठ्ठल पुढे उभा राहिला ||५|| धन्य ...

                                     || शेजारती ||

आता स्वामी सुखे निद्रा करा अवधूता | चिन्मय सुख धामी जाउनी पहुडा एकांता ||१|| वैराग्याचा कुंचा घेउनी चौक झाडीला स्वामी चौक झाडीला | तयावरी सप्रेमाचा शिडकावा केला | पायघड्या घातील्या सुंदर नवविधा भक्ती | ज्ञानाच्या समया लाउनी उजळील्या ज्योती | भावार्थाचा मंचक हृदयाकाशी टांगिला | मनाची सुमने जोडूनी केले शेजेला | व्दैताचे कपाट लाउनी एकत्र केले | दुर्बुद्धीच्या गाठी सोडूनी पडदे सोडीयले | आशा तृष्णा कल्पनेचा सांडूनी गल्बला | दया क्षमा, शांती दासी उभ्या सेवेला | अलक्ष उन्मनी घेउनी नाजूक हा दुशेला | गुरु हा नाजूक दुशेला | निरंजनी सदगुरु माझा निजला शेजेला || धृ || आता स्वामी...

                                    || अवधूत चिंतन श्रीगुरु देवदत्त ||

                                       || हरी ओम तत्सत ||

   

 

                             

                                                              ||  श्रीगुरोभ्यानमः ||                    

                              प्रत्येक गुरुवारी म्हणावयाची भजने.

   गुरुर्ब्रम्हा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरा | गुरुर्साक्षात परब्रम्ह तस्मै श्री गुरुवेनमह: ||

   ब्रम्हानंदम परमसुखदम केवलं ज्ञानमूर्तिम | व्दंदातितं गगन सदृशं तत्व मत्सादी लक्षम ||     

  एकं नित्यं विमल वचनं सर्वाधी साक्षी भूतम | भावातीतं त्रिगुण रहितं सद्गुरुं तन्मामी ||

(१)                                                               

ओमकार प्रधान रूप गणेशाचे | हे तिन्ही देवांचे जन्म स्थान ||ध्रुवपद||

‘अ’ कार तो ब्रम्ह ‘उ’ कार तो विष्णू | ‘म’ कार महेश जाणियेला||

ऐसे तिन्ही लोक जेथुनी उत्पन्न | तो हा गजानन मायबाप ||

तुका म्हणे ऐसी वेदवाणी | पहावी पुराणी व्यासांचीया ||

                                    श्रीदत्तात्रेय प्रार्थना स्त्रोत्र 

 श्रीपाद श्रीवल्लभ त्वं सदैव | श्रीदत्तास्मान्पाही देवाधिदेव | भावग्राहयम क्लेश हारीन्सू किर्ते |                         घोरात्कष्टां दुद्धरास्मान्नमस्ते  || ध्रु || त्वं नो माता त्वं पिताधोपिस्तवं | त्राता योगक्षेम कृत्सद्गुरुत्वम् |

त्वं सर्वस्वम नो प्रभो विश्वमुरते | घोरात्कष्टां दुद्धरास्मान्नमस्ते  ||२|| पापं व्याधीमाधींची दैन्यं | भितीं क्लेश्म त्वं हराशुत्वदन्यम |  त्रातारम नो विक्ष इशास्त जुर्ते | घोरात्कष्टां दुद्धारास्मान्न्मस्ते ||३|| नान्यास्त्राता नापी दाता न भर्ता | तत्वो देवत्वं शरण्यो $ कहर्ता |कुर्वात्रेयानु ग्रहमपूर्ण राते | घोरात्कष्टां धुद्धरास्मांन्नमस्ते ||४|| धर्में प्रीतीम संन्मतिं देवभक्तिं चाखीलानंद मूर्ते | घोरात्कष्टां धुद्धरास्मान्नमस्ते ||५|| श्लोक पंचकमे तधो लोकमंगल वर्धनम| प्रपठे न्नियतो भक्त्यास श्रीदत्तो प्रीयोभवेत ||६||

                           ||  इति श्री दत्तात्रेया स्तोत्रम ||

                                    ||  पंचपदी  ||

उद्धरी गुरुराया, अनसूया- तनया दत्तात्रेया ||धृवपद || जो अनसूयेच्या भावाला भुलूनिया सुत झाला | दत्तात्रेया अशा नामाला मिरवी वंद्य सुराला | तो तू मुनिवर्या, निजपाया  स्मरता वारीसी माया ||१|| जो माहुरपुरी शयन करी, संह्याद्रीचे शिखरी | निवासे, गंगेचे स्नान करी | भिक्षा कोल्हापुरी | स्मरता दर्शन दे | वारी भया तो तू आगमेया ||२|| तो तू वांझेसी सुत देसी, सौभाग्या वाढविसी | मरता प्रेतासी जीवविसी सव्दर दाणा देसी | यास्तव वासुदेव तव पाया, परी त्या तरी सदया ||३|| उद्धरी गुरुराया | अनसूया तनया दत्तात्रेया ||धृवपद||

                             दत्ता मजला प्रसन्न होसी.

दत्ता मजला प्रसन्न होसी जरी तू वर देसी | तरी आनन मागे तुझसी निर्धारूनि मानसी ||धृवपद||                                   स स्मरण तुझे मज नित्य असावे | भावे तव तव गुण गावे.| अनासाक्तीने मी वागावे | ऐसे मन वळवावे ||१||         सर्व इंद्रिये आणि मन हे तुझे हाती आहे | यास्तव आता तू लवलाहे स्वपदी मन रमवावे ||२||विवेक आणि सत्संगती हे नेत्रव्दय बा आहे | वासुदेव निर्मळ देहे जेणे त्वपदी राहे. ||३|| दत्ता मजला प्रसन्न होसी ---

                                 करुणा त्रिपदी

शांत हो श्रीगुरुदत्ता मन चित्ता शमवी आता.| तू केवळ माता जनिता सर्वथा तू हितकर्ता | तू आप्त स्वजन भ्राता | सर्वथा तूची त्राता | भय कर्ता तू भयहर्ता | दंड धरिता तू परी पाता | तुजवाचून न दुजी वार्ता | तू आता आश्रय दत्ता |१|| धृवपद|| अपराधास्तव तू गुरुनाथा जरी दंडा धरिसी यतार्था | तरी आम्ही गाउनी गाथा तव चरणी नमवू माथा | तू तथापि दंडीसी देवा कोणाचा मग करू धावा?| सोडविता दुसरा तेंव्हा कोण दत्ता आंहा त्राता ||२|| धृ ||तू नातासा होवुनी कोपी दंडीताही आम्ही पापी | पुनरूपी पुनरुपीही चुकता तथापि आम्हावरी नाच संतापी | गच्छत: स्सखलन्ननं कोपी असे मानुनी नच हो कोपी | निजकृपा लेशा ओपी | आम्हावरी तू भगवंता. ||३ || तव पदरी असता त्राता आडमार्गी पाउल पडीता सांभाळूनी मार्गावारीता आणिता न दुजा त्राता | निज बिरुदा आणुनी चित्ता | तू पतित पावन दत्ता | वळे आता आम्हावरीता करुणाघन तू गुरुनाथा || ४|| सहकुटुंब सहपरिवार दास आम्ही हे घरदार| तवपदी अर्पू असार संसार रहित हा भार | परी हारीसी करुणा  सिन्धो| तू  दिनानाथ सुबंधो आम्हा अधालेश न बाधो वासुदेव प्रार्थित दत्ता  ||५||

                                   श्रीगुरु दत्ता -----

श्रीगुरु दत्ता जय भगवंता,ते मन निष्ठुर न करी आता ||धृवपद|| चोरे व्दिजासी मारिता मन जे कळवळले ते कळवळो आता ||२|| पोटशुलाने व्दिज तडफडता कळवळले ते कळवळो आता.||३|| व्दिज सुत मरता वळले ते मन होकी उदासीन न वळेची आता ||४|| सतीपती मरता काकुळती येता वळले ते मन न वळे आता.||५|| श्रीगुरु दत्ता त्यजी निष्ठुरता कोमल चित्ता वळवी आता.||६||

                                  जय करुणाघन –

जय करुणाघन निजजन जीवन अनसूया नंदन पाही जनार्दन ||धृवपद|| निज अपराधे उपराठी दृष्टी होवून पोटी भयधरू पावन||१|| तू करुणाकर कधी आम्हावर रुससी न किंकर वरदा कृपाघन.||२|| वारी अपराध तू मायबाप तव मनी कोप लेश न वामन.||३|| बालका अपराधा गणे जरी माता तरी कोण त्राता देईल जीवन ||४|| प्रार्थी वासुदेव पदी ठेवी भाव पदी देवो ठाव देव अत्री नंदन ||५||

                                                    

                                  सांगावे कवण्या ठाया जावे

सांगावे कवण्या ठाया जावे, कवणाते स्मरावे, कैसे काय करावे, कवण्या परी मी राहावे,|कवण येउनी कुरुंदवाडी स्वामी ते मिळवावे.|याहारी जेवावे, व्यवहारी बोलावे संसारी घालुनी अंगिकारी प्रती पाळिसी जो निर्धारी केला जो निज निश्चय स्वामी कोठे तो अवधारी | या राणी माझी करुणा वाणी, काया कष्टी प्राणी, ऐकून घेशील कानी | देशील सौख्य निदानी | संकटी येउनी मूर्च्छित असता पाजिल कवण पाणी | त्यावेळा सत्पुरुषांचा मेळापाहतसे निज डोळां, लाविसी भस्म कपाळा, सांडी भय तू बाळा | श्रीपाद श्रीवल्लभ म्हणती अभय तुज गोपाळा||

                                तीन शिरे सहा हात ...

 तीन शिरे सहा हात | तया माझा दंडवत | काखे झोळी पुढे श्वान | नित्य जानव्हीचे स्नान |माथा शोभे जटाभार |अंगी विभूती सुंदर | शंख चक्र गदा हाती | पायी खडावा गर्जती | तुका म्हणे दिगंबर | तया माझा नमस्कार || धृ ||

                                   श्रीगुरु पादुकाष्टक

ज्या संगतीनेच विराग झाला | मनोदारीचा जडभास गेला | साक्षात परमात्मा मज भेटविला | विसरू कसा मी सद्गुरू पादुकेला.||१|| सद्योग पंथे घरी आणियेले | अन्गेच माते परब्रम्ह केले | प्रचंड तो बोध रवी उदेला | विसरू कसा मी सदगुरु पादुकेला ||२|| चराचरी व्यापकता जयाची | अखंड भेटी मजला त्याची | परमपदी संगम पूर्ण झाला | विसरू कसा मी सदगुरु पादुकेला ||३||  जो सर्वदा गुप्त जनात वागे | प्रपन्न भक्ता निजबोध सांगे | सदभक्ती भावा करीता भुकेला | विसरू कसा मी सदगुरु पादुकेला ||४|| अनंत माझे अपराध कोटी | नाणी मनी घालुनी सर्व पोटी | प्रबोध  करीता श्रम फार झाला | विसरू कसा  मी सदगुरु पादुकेला ||५|| कांही मला सेवनहीन न झाले | तथापि तेणे मज उद्धरिले | आता तरी अर्पीन प्राण त्याला | विसरू कसा मी सदगुरु पादुकेला ||६|| माझा अहंभाव वसे शरीरी | तथापि तो सदगुरु अंगीकारी | नाही मनी अल्प विकार ज्याला | विसरू कसा मी सदगुरु पादुकेला,||७|| आता कसा हा उपकार फेडू | हा देह ओवाळूनी दूर सोडू | म्या एक भावे प्रणिपात केला | विसरू कसा मी सदगुरु पादुकेला ||८|| जया वानिता वानिता वेदवाणी | म्हणे नेती नेती तिला जे दुरोनी | नव्हे अंत ना पार ज्याच्या रुपाला | विसरू कसा मी सदगुरु पादुकेला ||९|| जो साधूच्या अंकित जीव झाला | त्याचा भार असे निरांजनाला | नारायणाचा भ्रम दूर केला | विसरू कसा मी सदगुरु पादुकेला ||१०||

                                       || शरणागती ||               

 दत्तात्रेया तव शरणं | दत्तनाथा तव शरणं | त्रिगुणात्मका त्रिगुणातीता त्रिभुवन पालक तव शरणं ||१|| शाश्वत मूर्ते तव शरणं श्यामसुंदरा तव शरणं | शेषा भरणा शेष भूषणा शेषसायी गुरु तव शरणं ||२|| षड्भूज मूर्ते तव शरणं | षडभुज यतिवर तव शरणं | दंड कमंडलू गदा पद्म, शंख, चक्रधर तव शरणं ||३|| करूणा निधे तव शरणं | करुणा सागर तव शरणं | श्रीपाद श्रीवल्लभ गुरुवर नरसिंह सरस्वती तव शरणं ||४|| श्रीगुरुनाथा तव शरणं | सदगुरु नाथा तव शरणं | कृष्णा संगम तरुवर वासी भक्त वत्सला तव शरणं ||५|| कृपामुर्ते तव शरणं | कृपा सागरा तव शरणं कृपा कटाक्षा कृपावलोकन कृपानिधे प्रभू तव शरणं ||६|| कालांतका तव शरणं | कालनाशका तव शरणं | पूर्णानंदा पूर्ण पुरेषा पुराण पुरूषां तव शरणं ||७|| जगदीशा तव शरणं | जगन्नाथा तव शरणं | जगत्पालका जगदाधीशा, जगद्धोधारा तव शरणं ||८|| अखीलांतका तव शरणं | अखीलेश्वर्या तव शरणं | भक्तप्रिया वज्रपंजरा प्रसन्न वक्रा तव शरणं ||९|| दिगंबरा तव शरणं | दीनदयाघन तव शरणं | दिनानाथा दीनदयाळा दीनोद्धारा तव शरणं ||१०|| तापोमुर्ते तव शरणं | तेजोराशी तव शरणं | ब्रह्मानंदा ब्रम्हसनातन ब्रम्हमोहना तव शरणं ||११|| विश्वात्मका तव शरणं | विश्वरक्षका तव शरणं | विश्वंभरा विश्वजीवना विश्वपरात्पर तव शरणं ||१२|| विघ्नांतका तव शरणं | विघ्ननाशका तव शरणं | प्रणवातीता प्रेमवर्धना प्रकाशमूर्ते तव शरणं ||१३|| निजानंदा तव शरणं | निजपद दायका तव शरणं | नित्य निरंजन निराकारा तव शरणं ||१४|| चीधघन मूर्ते तव शरणं | चीदाकारा तव शरणं | चिदात्म रुपा चीदानंदा  चीत्सुक कंदा तव शरणं ||१५|| अनादी मूर्ते तव शरणं | अखीलावतारा  तव शरणं | अनंत कोटी ब्रम्हांड नायका अघटीत घटना तव शरणं ||१६|| भक्तोद्धारा तव शरणं | भक्त रक्षका तव शरणं | भक्तानुग्रह गुरुभक्त प्रिया, पतीतोद्धारा तव शरणं ||१७||

 

                                || प्रदक्षिणा ||

धन्य, धन्य हो प्रदक्षिणा सदगुरु रायाची | झाली त्वरा सुरवरा विमान उतरायाची ||धृ || पदोपदी अपार झाल्या पुण्याच्या राशी | सर्वही तीर्थे घडली आम्हा आदी करुनी काशी ||१|| मृदंग टाळ ढोल भक्त भावार्थे गाती | नाम संकीर्तने ब्रम्हानंदे नाचती ||२|| कोटी ब्रम्हहत्या हरिती करीता दंडवत | लोटांगण घालिता मोक्ष लोळे पायात ||३|| गुरुभजनाचा महिमा न काले आगमा-निगमासी | अनुभविते जाणीते ते गुरुपदीचे अभिलाषी ||४|| प्रदक्षिणा करुनी देह भावे वाहिला | श्रीरंगात्मक विठ्ठल पुढे उभा राहिला ||५|| धन्य ...

                                     || शेजारती ||

आता स्वामी सुखे निद्रा करा अवधूता | चिन्मय सुख धामी जाउनी पहुडा एकांता ||१|| वैराग्याचा कुंचा घेउनी चौक झाडीला स्वामी चौक झाडीला | तयावरी सप्रेमाचा शिडकावा केला | पायघड्या घातील्या सुंदर नवविधा भक्ती | ज्ञानाच्या समया लाउनी उजळील्या ज्योती | भावार्थाचा मंचक हृदयाकाशी टांगिला | मनाची सुमने जोडूनी केले शेजेला | व्दैताचे कपाट लाउनी एकत्र केले | दुर्बुद्धीच्या गाठी सोडूनी पडदे सोडीयले | आशा तृष्णा कल्पनेचा सांडूनी गल्बला | दया क्षमा, शांती दासी उभ्या सेवेला | अलक्ष उन्मनी घेउनी नाजूक हा दुशेला | गुरु हा नाजूक दुशेला | निरंजनी सदगुरु माझा निजला शेजेला || धृ || आता स्वामी...

                                    || अवधूत चिंतन श्रीगुरु देवदत्त ||

                                       || हरी ओम तत्सत ||

   

 

                             

                                                              ||  श्रीगुरोभ्यानमः ||                    

                              प्रत्येक गुरुवारी म्हणावयाची भजने.

   गुरुर्ब्रम्हा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरा | गुरुर्साक्षात परब्रम्ह तस्मै श्री गुरुवेनमह: ||

   ब्रम्हानंदम परमसुखदम केवलं ज्ञानमूर्तिम | व्दंदातितं गगन सदृशं तत्व मत्सादी लक्षम ||     

  एकं नित्यं विमल वचनं सर्वाधी साक्षी भूतम | भावातीतं त्रिगुण रहितं सद्गुरुं तन्मामी ||

(१)                                                               

ओमकार प्रधान रूप गणेशाचे | हे तिन्ही देवांचे जन्म स्थान ||ध्रुवपद||

‘अ’ कार तो ब्रम्ह ‘उ’ कार तो विष्णू | ‘म’ कार महेश जाणियेला||

ऐसे तिन्ही लोक जेथुनी उत्पन्न | तो हा गजानन मायबाप ||

तुका म्हणे ऐसी वेदवाणी | पहावी पुराणी व्यासांचीया ||

                                    श्रीदत्तात्रेय प्रार्थना स्त्रोत्र 

 श्रीपाद श्रीवल्लभ त्वं सदैव | श्रीदत्तास्मान्पाही देवाधिदेव | भावग्राहयम क्लेश हारीन्सू किर्ते |                         घोरात्कष्टां दुद्धरास्मान्नमस्ते  || ध्रु || त्वं नो माता त्वं पिताधोपिस्तवं | त्राता योगक्षेम कृत्सद्गुरुत्वम् |

त्वं सर्वस्वम नो प्रभो विश्वमुरते | घोरात्कष्टां दुद्धरास्मान्नमस्ते  ||२|| पापं व्याधीमाधींची दैन्यं | भितीं क्लेश्म त्वं हराशुत्वदन्यम |  त्रातारम नो विक्ष इशास्त जुर्ते | घोरात्कष्टां दुद्धारास्मान्न्मस्ते ||३|| नान्यास्त्राता नापी दाता न भर्ता | तत्वो देवत्वं शरण्यो $ कहर्ता |कुर्वात्रेयानु ग्रहमपूर्ण राते | घोरात्कष्टां धुद्धरास्मांन्नमस्ते ||४|| धर्में प्रीतीम संन्मतिं देवभक्तिं चाखीलानंद मूर्ते | घोरात्कष्टां धुद्धरास्मान्नमस्ते ||५|| श्लोक पंचकमे तधो लोकमंगल वर्धनम| प्रपठे न्नियतो भक्त्यास श्रीदत्तो प्रीयोभवेत ||६||

                           ||  इति श्री दत्तात्रेया स्तोत्रम ||

                                    ||  पंचपदी  ||

उद्धरी गुरुराया, अनसूया- तनया दत्तात्रेया ||धृवपद || जो अनसूयेच्या भावाला भुलूनिया सुत झाला | दत्तात्रेया अशा नामाला मिरवी वंद्य सुराला | तो तू मुनिवर्या, निजपाया  स्मरता वारीसी माया ||१|| जो माहुरपुरी शयन करी, संह्याद्रीचे शिखरी | निवासे, गंगेचे स्नान करी | भिक्षा कोल्हापुरी | स्मरता दर्शन दे | वारी भया तो तू आगमेया ||२|| तो तू वांझेसी सुत देसी, सौभाग्या वाढविसी | मरता प्रेतासी जीवविसी सव्दर दाणा देसी | यास्तव वासुदेव तव पाया, परी त्या तरी सदया ||३|| उद्धरी गुरुराया | अनसूया तनया दत्तात्रेया ||धृवपद||

                             दत्ता मजला प्रसन्न होसी.

दत्ता मजला प्रसन्न होसी जरी तू वर देसी | तरी आनन मागे तुझसी निर्धारूनि मानसी ||धृवपद||                                   स स्मरण तुझे मज नित्य असावे | भावे तव तव गुण गावे.| अनासाक्तीने मी वागावे | ऐसे मन वळवावे ||१||         सर्व इंद्रिये आणि मन हे तुझे हाती आहे | यास्तव आता तू लवलाहे स्वपदी मन रमवावे ||२||विवेक आणि सत्संगती हे नेत्रव्दय बा आहे | वासुदेव निर्मळ देहे जेणे त्वपदी राहे. ||३|| दत्ता मजला प्रसन्न होसी ---

                                 करुणा त्रिपदी

शांत हो श्रीगुरुदत्ता मन चित्ता शमवी आता.| तू केवळ माता जनिता सर्वथा तू हितकर्ता | तू आप्त स्वजन भ्राता | सर्वथा तूची त्राता | भय कर्ता तू भयहर्ता | दंड धरिता तू परी पाता | तुजवाचून न दुजी वार्ता | तू आता आश्रय दत्ता |१|| धृवपद|| अपराधास्तव तू गुरुनाथा जरी दंडा धरिसी यतार्था | तरी आम्ही गाउनी गाथा तव चरणी नमवू माथा | तू तथापि दंडीसी देवा कोणाचा मग करू धावा?| सोडविता दुसरा तेंव्हा कोण दत्ता आंहा त्राता ||२|| धृ ||तू नातासा होवुनी कोपी दंडीताही आम्ही पापी | पुनरूपी पुनरुपीही चुकता तथापि आम्हावरी नाच संतापी | गच्छत: स्सखलन्ननं कोपी असे मानुनी नच हो कोपी | निजकृपा लेशा ओपी | आम्हावरी तू भगवंता. ||३ || तव पदरी असता त्राता आडमार्गी पाउल पडीता सांभाळूनी मार्गावारीता आणिता न दुजा त्राता | निज बिरुदा आणुनी चित्ता | तू पतित पावन दत्ता | वळे आता आम्हावरीता करुणाघन तू गुरुनाथा || ४|| सहकुटुंब सहपरिवार दास आम्ही हे घरदार| तवपदी अर्पू असार संसार रहित हा भार | परी हारीसी करुणा  सिन्धो| तू  दिनानाथ सुबंधो आम्हा अधालेश न बाधो वासुदेव प्रार्थित दत्ता  ||५||

                                   श्रीगुरु दत्ता -----

श्रीगुरु दत्ता जय भगवंता,ते मन निष्ठुर न करी आता ||धृवपद|| चोरे व्दिजासी मारिता मन जे कळवळले ते कळवळो आता ||२|| पोटशुलाने व्दिज तडफडता कळवळले ते कळवळो आता.||३|| व्दिज सुत मरता वळले ते मन होकी उदासीन न वळेची आता ||४|| सतीपती मरता काकुळती येता वळले ते मन न वळे आता.||५|| श्रीगुरु दत्ता त्यजी निष्ठुरता कोमल चित्ता वळवी आता.||६||

                                  जय करुणाघन –

जय करुणाघन निजजन जीवन अनसूया नंदन पाही जनार्दन ||धृवपद|| निज अपराधे उपराठी दृष्टी होवून पोटी भयधरू पावन||१|| तू करुणाकर कधी आम्हावर रुससी न किंकर वरदा कृपाघन.||२|| वारी अपराध तू मायबाप तव मनी कोप लेश न वामन.||३|| बालका अपराधा गणे जरी माता तरी कोण त्राता देईल जीवन ||४|| प्रार्थी वासुदेव पदी ठेवी भाव पदी देवो ठाव देव अत्री नंदन ||५||

                                                    

                                  सांगावे कवण्या ठाया जावे

सांगावे कवण्या ठाया जावे, कवणाते स्मरावे, कैसे काय करावे, कवण्या परी मी राहावे,|कवण येउनी कुरुंदवाडी स्वामी ते मिळवावे.|याहारी जेवावे, व्यवहारी बोलावे संसारी घालुनी अंगिकारी प्रती पाळिसी जो निर्धारी केला जो निज निश्चय स्वामी कोठे तो अवधारी | या राणी माझी करुणा वाणी, काया कष्टी प्राणी, ऐकून घेशील कानी | देशील सौख्य निदानी | संकटी येउनी मूर्च्छित असता पाजिल कवण पाणी | त्यावेळा सत्पुरुषांचा मेळापाहतसे निज डोळां, लाविसी भस्म कपाळा, सांडी भय तू बाळा | श्रीपाद श्रीवल्लभ म्हणती अभय तुज गोपाळा||

                                तीन शिरे सहा हात ...

 तीन शिरे सहा हात | तया माझा दंडवत | काखे झोळी पुढे श्वान | नित्य जानव्हीचे स्नान |माथा शोभे जटाभार |अंगी विभूती सुंदर | शंख चक्र गदा हाती | पायी खडावा गर्जती | तुका म्हणे दिगंबर | तया माझा नमस्कार || धृ ||

                                   श्रीगुरु पादुकाष्टक

ज्या संगतीनेच विराग झाला | मनोदारीचा जडभास गेला | साक्षात परमात्मा मज भेटविला | विसरू कसा मी सद्गुरू पादुकेला.||१|| सद्योग पंथे घरी आणियेले | अन्गेच माते परब्रम्ह केले | प्रचंड तो बोध रवी उदेला | विसरू कसा मी सदगुरु पादुकेला ||२|| चराचरी व्यापकता जयाची | अखंड भेटी मजला त्याची | परमपदी संगम पूर्ण झाला | विसरू कसा मी सदगुरु पादुकेला ||३||  जो सर्वदा गुप्त जनात वागे | प्रपन्न भक्ता निजबोध सांगे | सदभक्ती भावा करीता भुकेला | विसरू कसा मी सदगुरु पादुकेला ||४|| अनंत माझे अपराध कोटी | नाणी मनी घालुनी सर्व पोटी | प्रबोध  करीता श्रम फार झाला | विसरू कसा  मी सदगुरु पादुकेला ||५|| कांही मला सेवनहीन न झाले | तथापि तेणे मज उद्धरिले | आता तरी अर्पीन प्राण त्याला | विसरू कसा मी सदगुरु पादुकेला ||६|| माझा अहंभाव वसे शरीरी | तथापि तो सदगुरु अंगीकारी | नाही मनी अल्प विकार ज्याला | विसरू कसा मी सदगुरु पादुकेला,||७|| आता कसा हा उपकार फेडू | हा देह ओवाळूनी दूर सोडू | म्या एक भावे प्रणिपात केला | विसरू कसा मी सदगुरु पादुकेला ||८|| जया वानिता वानिता वेदवाणी | म्हणे नेती नेती तिला जे दुरोनी | नव्हे अंत ना पार ज्याच्या रुपाला | विसरू कसा मी सदगुरु पादुकेला ||९|| जो साधूच्या अंकित जीव झाला | त्याचा भार असे निरांजनाला | नारायणाचा भ्रम दूर केला | विसरू कसा मी सदगुरु पादुकेला ||१०||

                                       || शरणागती ||               

 दत्तात्रेया तव शरणं | दत्तनाथा तव शरणं | त्रिगुणात्मका त्रिगुणातीता त्रिभुवन पालक तव शरणं ||१|| शाश्वत मूर्ते तव शरणं श्यामसुंदरा तव शरणं | शेषा भरणा शेष भूषणा शेषसायी गुरु तव शरणं ||२|| षड्भूज मूर्ते तव शरणं | षडभुज यतिवर तव शरणं | दंड कमंडलू गदा पद्म, शंख, चक्रधर तव शरणं ||३|| करूणा निधे तव शरणं | करुणा सागर तव शरणं | श्रीपाद श्रीवल्लभ गुरुवर नरसिंह सरस्वती तव शरणं ||४|| श्रीगुरुनाथा तव शरणं | सदगुरु नाथा तव शरणं | कृष्णा संगम तरुवर वासी भक्त वत्सला तव शरणं ||५|| कृपामुर्ते तव शरणं | कृपा सागरा तव शरणं कृपा कटाक्षा कृपावलोकन कृपानिधे प्रभू तव शरणं ||६|| कालांतका तव शरणं | कालनाशका तव शरणं | पूर्णानंदा पूर्ण पुरेषा पुराण पुरूषां तव शरणं ||७|| जगदीशा तव शरणं | जगन्नाथा तव शरणं | जगत्पालका जगदाधीशा, जगद्धोधारा तव शरणं ||८|| अखीलांतका तव शरणं | अखीलेश्वर्या तव शरणं | भक्तप्रिया वज्रपंजरा प्रसन्न वक्रा तव शरणं ||९|| दिगंबरा तव शरणं | दीनदयाघन तव शरणं | दिनानाथा दीनदयाळा दीनोद्धारा तव शरणं ||१०|| तापोमुर्ते तव शरणं | तेजोराशी तव शरणं | ब्रह्मानंदा ब्रम्हसनातन ब्रम्हमोहना तव शरणं ||११|| विश्वात्मका तव शरणं | विश्वरक्षका तव शरणं | विश्वंभरा विश्वजीवना विश्वपरात्पर तव शरणं ||१२|| विघ्नांतका तव शरणं | विघ्ननाशका तव शरणं | प्रणवातीता प्रेमवर्धना प्रकाशमूर्ते तव शरणं ||१३|| निजानंदा तव शरणं | निजपद दायका तव शरणं | नित्य निरंजन निराकारा तव शरणं ||१४|| चीधघन मूर्ते तव शरणं | चीदाकारा तव शरणं | चिदात्म रुपा चीदानंदा  चीत्सुक कंदा तव शरणं ||१५|| अनादी मूर्ते तव शरणं | अखीलावतारा  तव शरणं | अनंत कोटी ब्रम्हांड नायका अघटीत घटना तव शरणं ||१६|| भक्तोद्धारा तव शरणं | भक्त रक्षका तव शरणं | भक्तानुग्रह गुरुभक्त प्रिया, पतीतोद्धारा तव शरणं ||१७||

 

                                || प्रदक्षिणा ||

धन्य, धन्य हो प्रदक्षिणा सदगुरु रायाची | झाली त्वरा सुरवरा विमान उतरायाची ||धृ || पदोपदी अपार झाल्या पुण्याच्या राशी | सर्वही तीर्थे घडली आम्हा आदी करुनी काशी ||१|| मृदंग टाळ ढोल भक्त भावार्थे गाती | नाम संकीर्तने ब्रम्हानंदे नाचती ||२|| कोटी ब्रम्हहत्या हरिती करीता दंडवत | लोटांगण घालिता मोक्ष लोळे पायात ||३|| गुरुभजनाचा महिमा न काले आगमा-निगमासी | अनुभविते जाणीते ते गुरुपदीचे अभिलाषी ||४|| प्रदक्षिणा करुनी देह भावे वाहिला | श्रीरंगात्मक विठ्ठल पुढे उभा राहिला ||५|| धन्य ...

                                     || शेजारती ||

आता स्वामी सुखे निद्रा करा अवधूता | चिन्मय सुख धामी जाउनी पहुडा एकांता ||१|| वैराग्याचा कुंचा घेउनी चौक झाडीला स्वामी चौक झाडीला | तयावरी सप्रेमाचा शिडकावा केला | पायघड्या घातील्या सुंदर नवविधा भक्ती | ज्ञानाच्या समया लाउनी उजळील्या ज्योती | भावार्थाचा मंचक हृदयाकाशी टांगिला | मनाची सुमने जोडूनी केले शेजेला | व्दैताचे कपाट लाउनी एकत्र केले | दुर्बुद्धीच्या गाठी सोडूनी पडदे सोडीयले | आशा तृष्णा कल्पनेचा सांडूनी गल्बला | दया क्षमा, शांती दासी उभ्या सेवेला | अलक्ष उन्मनी घेउनी नाजूक हा दुशेला | गुरु हा नाजूक दुशेला | निरंजनी सदगुरु माझा निजला शेजेला || धृ || आता स्वामी...

                                    || अवधूत चिंतन श्रीगुरु देवदत्त ||

                                       || हरी ओम तत्सत ||